बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट को तो हर कोई जानता हैं उनकी फिल्में साधारण नहीं होती हैं, क्यूंकि वो खुद एक असाधारण इंसान हैं. अब तो उनकी फिल्में चीन में भी सुपरहिट हो रहीं हैं. लेकिन आपको जानकार थोड़ा आश्चर्य होगा की उनके चचेरे भाई मंसूर खान इन दिनों पहाड़ो में गुमनामी की ज़िंदगी व्यतीत कर रहे हैं.
मंसूर खान का बॉलीवुड में एक समय काफी बड़ा रुतबा था उनके नाम ‘कयामत से कयामत तक’, जो जीता वही सिकंदर,अकेले हम अकेले तुम, जोश और जाने तू या जाने ना के निर्देशन से लेकर निर्माता तक का श्रेय हैं. ‘कयामत से कयामत तक’ के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड भी मिल चुका हैं.
लेकिन १५ साल से वो तमिलनाडु के कुनूर में खेती कर रहे हैं और उनका पूरा परिवार वही रहता हैं. उन्होंने ‘चीज़’ बनाने के लिए फिल्मों को छोड़ दिया, क्यूंकि उनकी यह इच्छा बचपन से ही थीं.
एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था, “यह अचानक लिया गया फैसला नहीं था। बल्कि बचपन से ही मैं ऐसा कोई बिजनेस करना चाहता था। पनवेल में हमारी कुछ जमीन थी, जिससे हमें काफी लगाव था। मैं और मेरी बहन वहां जाते थे और अपने हाथों से भिंडी के पौधे लगाया करते थे। मैं अब्रॉड से कॉर्नेल और MIT तक गया, लेकिन अंदर से खुश नहीं था।”
मंसूर फिल्मों में इसलिए आये क्यूंकि यह उनके पिताजी की चाहत थीं लेकिन उस वक्त भी वो ज़मीन से जुड़े रहे. अलीबाग के करीब उनकी कुछ ज़मीन थीं लेकिन जब सरकार उस जमीन को अधिग्रहण कर एयरपोर्ट बनाना चाहती थीं तो उन्हें भूमि अधिग्रहण और इसके अधिकारों के बारे में पता चला.
मंसूर अक्सर कुनूर आया करते थे क्यूंकि उनका भांजा इमरान खान यहाँ बोर्डिंग में पढ़ाई कर रहा था. मसनूर जब कुनूर आये थे तब वो काफी कर्ज में डूबे थे, पेरेंट्स की डेथ हो जाने से वो काफी डिप्रेशन में चले गए थीं. बॉलीवुड छोड़ना उनके लिए आसान काम था क्यूंकि उसे उन्होंने अपने ज़िंदगी के गैप को भरने के लिए चुना था. शुरुवात में जब वो कुनूर आये तो उनके दोस्तों को लगा की उन्हें अकेलापन अच्छा लगने लगा हैं.
मंसूर जब कुनूर आये तो २२ अकड़ की ज़मीन हरी भरी नहीं थीं लेकिन उन्होंने दिन रात मेहनत करके उसे उपजाऊ बनाया. उन्होंने 7 एकड़ जमीन, 7 गाय और दो बकरियां खरीदकर अपना बिजनेस शुरू किया था।