83. फ्लॉप होने के बाद फिल्ममेकर्स को लगभग 120. करोड़ का नुकसान हो गया. रणवीर की स्टारडम पाताल लोक में चली गयी हैं. रणवीर सिंह का पागलपन भी ठीक हो गया हैं. आजकल ढंग के कपडे पहनकर आता हैं. क्यूंकि टीवी शो भी फ्लॉप हो गया हैं और साजिद नडियाद वाला ने भी एक फिल्म से निकाल दिया हैं. साल की शुरुवात और इतना अचीवमेंट.
दिल है की मानता नहीं हैं और एचीवमेंट्स हैं की संभलते ही नहीं. रणवीर ने एक फैसला किया जो उनके एक करीबी ने मीडिया में शेयर किया हैं की अब वो 83. के बाद किसी और की बायोपिक नहीं करना चाहते हैं. इस फिल्म को वो यादगार ही रखना चाहते हैं.
जबकि रियलिटी ये हैं की रणवीर ने खुद कहा था की वो पांच बायोपिक करनेवाले हैं जो उनके हाथ में हैं. लेकिन 83. फ्लॉप हो गयी तो ये पांच बायोपिक से भी मेकर्स ने किनारा कर लिया लेकिन इज्जत छुपी रह जाये इसलिए बोल रहे हैं की वो बायोपिक नहीं करना चाहते हैं.
अब क्रिकेट खेलना कोई लंगड़ी और लागोरी खेलने जैसा तो है नहीं. क्रिकेट खेलने भी आना चाहिए. और क्रिकेटर दिखना ज़रूरी नहीं हैं उसके जैसे हाव भाव भी नज़र आने चाहिए. और इस तरह की फिल्म डायरेक्टर को डायरेक्ट करनी भी आनी चाहिए.
और ये सारी चीज़ें सिर्फ एक ही फिल्म में थीं और एक ही इंसान ने की थीं वो कोई और नहीं सुशांत सिंह राजपूत थे. जिन्होंने ना सिर्फ क्रिकेट खेलना सीखा, बल्कि धोना जैसा चलना, बोलना, खेलना, उनके जैसा हाव भाव, चेहरे पर एक भाव कब किस सिचुएशन में कैसा होना चाहिए.
धोनी सिर्फ एक क्रिकेट की फिल्म नहीं थीं. उसमे परिवार का साथ, दोस्ती का मतलब, संघर्ष, मोटिवेशन जो एक आम इंसान को चाहिए. हलकी फुलकी कॉमेडी, बेहतरीन गाने, एक प्यारी सी लोव स्टोरी, डायरेक्शन, एडिटिंग, म्यूजिक, जोश ..बाबा क्या नहीं था उस फिल्म के अंदर.
उसके बाद भी बॉलीवुड के कुछ ठरकी लोग बोल दें की सुशांत नशेड़ी था उसके पास काम नहीं था. वो लंबी रेस का घोड़ा नहीं था. तो नशेड़ी कौन हैं ये बताने की आज ज़रूरत नहीं हैं. उसके पास काम तो बहुत था लेकिन कई बार उससे उसके काम छीन लिए गए. वो बॉलीवुड के नशेड़ियों से कहीं आगे ना निकल जाये इसलिए एक योजना बनाई गयी. जिसकी सजा आज बॉलीवुड भुगत रहा हैं.