13.दिस्मबर 2001. ये वो मनहूस दिन था जिसे राजदीप सरदेसाई जैसा एक वाहियात पत्रकार ग्रेट डे एक महान दिन एक बेहतर दिन बताता हैं. क्यूंकि इसकी गिद्ध पत्रकारिता के लिए इससे बेहतर दिन कुछ हो ही नहीं सकता था. इस दिन संसद पर अटैक हुआ था. इसमें संसद भवन के सुरक्षाकर्मी, दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग वीरगति को प्राप्त हो गए थे.
राजदीप का कहना था की उस दिन वो अपनी टीम के साथ संसद भवन में पिकनिक मानाने गया था. उसने कबाब वगैरह आर्डर किया था. तभी उसी गोलियों की आवाज़ सुनाई पड़ती हैं. और वो अपने साथ वाले पत्रकार को कहता हैं की जल्दी से गेट बंद कर ताकि कोई दूसरे चैनल का पत्रकार अंदर ना सके.
हम जो पिकनिक की तयारी कर रहे थे सब भूल गए शराब और कबाब को भुला दिया. सोचिए बाद में कितनी बेहूदगी से ये भी कहता हैं की “यह एक महान दिन था। हम गिद्धों की तरह हैं, हम इन पलों को भुनाते हैं.
एनडीटीवी से जुड़ी रही एक अन्य सेलिब्रिटी पत्रकार बरखा दत्त भी मुंबई हमले, कारगिल युद्ध जैसे संवेदनशील मुद्दों के कवरेज के दौरान अपनी करनी को लेकर विवादों में रही हैं.
राजदीप सरदेसाई वही पत्रकार हैं जो रिया का इंटरव्यू लेकर उसे महान बनाता हैं और सुशांत की मौत की जांच को सर्कस का खेल कहता हैं. इसके जैसा गिरा हुआ बीका हुआ पत्रकार मैंने आज तक नहीं देखा.